कथाकार-उपन्यासकार शालिग्राम सिंह के निधन पर मिथिलांछल में शोक की लहर
न्यूज़96इंडिया, सहरसा
सहरसा:अटपट बैन, मैलो नीर भरो, पाही आदमी, नई शुरुआत, शालिग्राम की सात आंचलिक कहानियाँ’ कथा संग्रह, पत्रों के बीच में साहित्यकारों के पत्र, इजोतिया, सांघटिका, आंगन में झुका आसमान कविता संग्रह, देखा दर्पण अपना तर्पण आत्मकथा, किनारे के लोग, कित आऊँ कित जाऊं, घोघो रानी कितना पानी आदि महत्वपूर्ण उपन्यासों के लेखक एवं राजकमल चौधरी, नागार्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु के समकालीन शालिग्राम सिंह का जाना एक युग का अंत है.
कोसी क्षेत्र का साहित्यिक परिदृश्य थोड़ा और उदास, थोड़ा और खाली हो गया है.अपने अंतिम क्षण तक वह रचनात्मक बने रहे और अपना अंतिम उपन्यास सुन रे मानुष भाय – को पूरा करने में जुटे थे.वर्ष 1934 में मुंगेर अब खगड़िया के पचौत गांव में जन्मे शालिग्राम सिंह ने अपनी शिक्षा भागलपुर में पूरी की, लेकिन उन्हें साहित्य की विरासत सहरसा की धरती पर मिला. उनका पहला कहानी संग्रह पाही आदमी जब प्रकाशित हुआ, तो उसे बिहार की एक साहित्यिक उपलब्धि माना गया और उस कहानी संग्रह की प्रशंसा बाबा नागार्जुन, रेणु और वासुदेव शरण अग्रवाल ने खुलकर की.
1960 के दशक से ही देश भर की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने वाले शालिग्राम बाबू की रचनाएं बिहार एवं दिल्ली के आकाशवाणी केंद्रों से प्रसारण होती रहीं.उन्होंने कभी कोई सरकारी या गैर-सरकारी नौकरी नहीं की और कृषि-कर्म को जीवन-यापन का उत्तम साधन माना और कोसी की कलकल छल-छल धारा के बीच निरन्तर साहित्य सृजन में संलग्न रहे।शालिग्राम की ‘पाही आदमी’, ‘नटुआ दयाल’, ‘केंचुल’, ‘इजोतिया’, ‘बासमती’, ‘राकस’ आदि कहानियों को आंचलिक कहानियों के रूप में प्रसिद्धि मिली.
शालिग्राम की पहली कहानी ‘इजोतिया’ सन् 1963 ई. में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। ‘इजोतिया’ कहानी छपने के बाद पाठकों से इन्हें ढेरों पत्र मिले। उसके बाद तो ‘धर्मयुग’, ‘सारिका’, ‘नई कहानियाँ’ आदि विशिष्ट पत्रिकाओं में लगातार इनकी कहानियाँ छपने लगीं और ये ग्राम्यांचल के कुशल चितेरे के रूप में चर्चित हो गए. ‘इजोतिया’ के बाद इनकी सर्वाधिक चर्चित कहानी है ‘नटुआ दयाल’ जो ‘सारिका’ पत्रिका (1-15 अगस्त 1986) में छपी थी.
‘पतंगे की मौत’ कहानी ‘नई कहानियाँ’ में छपी थी, 1969 ई. में। देह गाथा पर आधारित इस आंचलिक कहानी में स्त्री की आकांक्षा, अतृप्ति, उत्तेजना, अंतर्द्वंद्व और अंतर्दशा का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है.स्त्री जीवन के यातना भरे कोनों को यह कहानी कलात्मक ढंग से उजागर करती है. ‘कोई उत्तर नहीं’ कहानी ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में छपी थी.
इस कहानी में लेखक ने वृद्ध पिता की मनोदशा को गहराई से समझकर उसकी पीड़ा को सूक्ष्मता से अंकित किया है. सन् 1963 ई. में इनका पहला कहानी संग्रह ‘पाही आदमी’ प्रकाशित हुआ. ‘पाही आदमी’ कहानी संग्रह में कथाशिल्पी ‘रेणु’ ने टिप्पणी लिखी थी, “हिन्दी साहित्य में आंचलिक लेखन और आंचलिकता एक विवाद का विषय बना हुआ है.शालिग्राम का कथा संग्रह ‘पाही आदमी’ इस चर्चा-परिचर्चा के लिए प्रचुर सामग्री लेकर प्रकाशित हो रहा है.एक-एक कहानी रस और वैचित्र्य से परिपूर्ण है.
नवागत लेखक की प्रथम रचना में आंतरिकता का तनिक भी अभाव नहीं है. इसलिए सभी कहानियाँ हृदयग्राही हैं.पाही आदमी कथा संग्रह पर बाबा नागार्जुन ने कहा था- “कोसी तटबंधों से लगे अंचलों में नया संसार आबाद होता जा रहा है. तरुण कथा-शिल्पी शालिग्राम की पैनी निगाहों से छनकर उन अंचलों का जीवन रस हमें अनूठा स्वाद देता है.डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने भी अपनी टिप्पणी देते हुए कहा था- “आपने बहुत सरल एवं रोचक शैली में बिहार और नेपाल के बीच के आंचलिक जीवन का चित्र खींचा है, जो बहुत सरस और हृदयग्राही है. ग्राँव के जीवन का निकट से परिचय देने वाली ये कहानियाँ पठनीय हैं और इनका निजी महत्त्व है।”
स्वयं शालिग्राम बाबू ने अपने बारे में कहीं लिखा है-“मैंने गाँव की धरती पर खासकर कोसी नदी के मुहाने से घिरे गाँव तथा टोलों के निम्न, मध्यम एवं उच्चवर्गीय चरित्रों की उठा-पटक स्थितियों को हिन्दी के साथ-साथ बिहार की सहचरी भाषाएँ मैथिली, अंगिका तथा भोजपुरी का प्रयोग करते हुए, चरित्रों के वस्तुनिष्ठ एवं आत्मनिष्ठ पहुँच को समायोजित करने का भरसक प्रयास किया है.” सुपरिचित आलोचक वरुण कुमार तिवारी ने शालिग्राम सिंह की रचनाओं का गहरा अध्ययन और विश्लेषण किया है.आज मिथिला व कोसी परिसर एक बार फिर उदास और अवसन्न है. कोसी के ही नहीं बल्कि देश के कई प्रसिद्ध साहित्यकारों ने उनके देहावसान पर अपनी संवेदना व्यक्त की है. उनके करीबी रहे साहित्यकार कुमार विक्रमादित्य ने बताया कि आज सुबह 3 बजकर 35 मिनट में उन्होंने अंतिम सांस ली.
उन्होंने बताया कि आज साहित्य के एक युग का अंत हो गया है. साहित्यकार रमन कुमार सिंह, केदार कानन, देवेंद्र कुमार देवेश, किसलय कृष्ण, अजित आज़ाद, मांगन मिश्र मार्तण्ड, भीमनाथ झा, नीलमाधव चौधरी, अवधेश कुमार झा, नारायण जी, रामदेव सिंह, ईला झा, प्रदीप बिहारी, रामकुमार सिंह, आदि साहित्यकारों ने उनके प्रति श्रद्धांजलि देकर अपना दुख प्रकट किया है. शालिग्राम जी अपने पीछे तीन पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गए हैं.